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पहचान ले चली

आज का विषय -पहचान


        नई पहचान ले चली


बाबुल तेरी परी आज ,एकनई पहचान ले चली।

तेरी गलियों  को  छोड़ ,ससुराल गली बढ़ चली।


पहचानते थे यहाँ तेरे ,नाम से लोग मोहे बाबुल।

कहते बड़ी नटखट  है , ये वृषभानु की लली।


माँ की तरह बातें  करना, उनकी तरह  चलना।

सराहते थकते न लोग, माँ के पदचिन्हों पर चली।


अब नए देश जा रही, अपने नए आशियाने में।

वो परिवेश कैसे भूलूँ ,जिसमें बचपन से हूँ पली।


नए लोग नए रिश्ते ,वहाँ की हर बात होगी नई।

कैसे ढल पाएगी बाबुल!तेरे अँगना की नाज़ुक कली।


निभा तो लूँगी बाबुल मैं अच्छी तरह वहाँ पर भी।

माँ  संस्कार को अपने ,पल्लू में जो बांध चली।


मैं रहूँगी खुश बाबुल! तुम  मेरी फिकर न करना।

अगर वो साथ दें मेरा,जिन संग गाँठ बांध मैंचली।


बनी है पहचान नई मेरी,पर खत्म तो नहीं हुई।

सदा रहूँगी बाबुल! तेरे दिल में याद बनकर खिली।


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'

22/6/21












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10 Comments

Aliya khan

22-Jun-2021 09:07 PM

वाह 👏👏👏👏

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Vfyjgxbvxfg

22-Jun-2021 06:46 PM

आज की हमारी पसंदीदा रचना😍

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Kshama bajpai

22-Jun-2021 06:43 PM

Wahhhh....❤👌

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